ब्रसेल्स सम्मेलन के मौक़े पर, यमन के लिए तत्काल सहायता अपील

ब्रसेल्स सम्मेलन के मौक़े पर, यमन के लिए तत्काल सहायता अपील

ब्रसेल्स सम्मेलन के मौक़े पर, यमन के लिए तत्काल सहायता अपील

यमन में लगभग नौ वर्षों से जारी युद्ध ने देश की क़रीब आधी आबादी, यानि एक करोड़ 82 लाख लोगों को मानवीय सहायता और संरक्षण सेवाओं पर निर्भर बना दिया है. इनमें अधिकतर महिलाएँ और बच्चे हैं.

यमन में चलाए जा रहे मानवीय सहायता अभियान, दुनिया भर में सबसे बड़े अभियानों में से एक है, मगर देश के लिए जारी की गई $2.7 अरब की सहायता अपील के जवाब में, अभी तक केवल $43 करोड़ 50 लाख की रक़म प्राप्त हुई है.

जीवनरक्षक सहायता के लिए जोखिम

संयुक्त राष्ट्र के साझीदारों ने कहा है, “समुचित दान धनराशि नहीं मिलना, मानवीय सहायता के कार्यक्रमों को जारी रखने के लिए एक चुनौती है, जिसके कारण जीवनरक्षक सहायता मुहैया कराने में देरी होती है, सहायता के आकार को कम करना पड़ता है या फिर स्थगित ही करना पड़ता है.”

यह सहायता अपील, यमन पर मंगलवार को ब्रसेल्स में होने वाले एक प्रमुख सम्मेलन के अवसर पर जारी की गई है. इस सम्मेलन को, यमन में लगातार बिगड़ती स्थिति का सामना करने में सामूहिक कार्रवाई को बढ़ावा देने के लिए अहम बताया जा रहा है.

यमन के सरकारी बल, देश में 2014 से हूथी विद्रोहियों के साथ युद्धरत हैं. यमन की सरकार को सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबन्धन का समर्थन हासिल है.

ग़ाज़ा में युद्ध ने, यमन की स्थिति को और भी जटिल बना दिया है, क्योंकि हूथी विद्रोही लाल सागर से गुज़रने वाले जहाज़ों पर हमले कर रहे हैं, जिससे वैश्विक समुद्री व्यापार प्रभावित हुआ है.

‘एक चौराहे पर’

यूएन साझीदारों का कहना है, “आज यमन एक चौराहे पर है.”

उन्होंने ध्यान दिलाते हुए कहा है कि अप्रैल 2022 में संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से एक युद्धविराम समझौता होने और उसके प्रभावी रहने से, मानवीय परिस्थितियाँ कुछ बेहतर हुई हैं. इस समझौते के लागू रहने से सहनशीलता निर्माण कार्यक्रमों, टिकाऊ समाधानों को आगे बढ़ाने और ज़रूरतों का आकलन करना सम्भव हो सका है.

हालाँकि उन्होंने ये भी कहा है कि इसके बावजूद मानवीय ज़रूरतों के दायरे को नज़रअन्दाज़ नहीं किया जा सकता है और ये ज़रूरतें, समुचित धन सहायता के बिना पूरी नहीं की जा सकती हैं.

मानवीय सहायता की ज़रूरतों में, आर्थिक पतन, बदतर होती सार्वजनिक सेवाओं, बिखरते बुनियादी ढाँचे, विस्थापन और जलवायु सम्बन्धी आपदाओं के कारण और भी बढ़ोत्तरी हो रही है.

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